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Tuesday, October 17, 2017

मोटापा कम करने का ये तरीका हो सकता है ख़तरनाक

मोटापा कम करने का ये तरीका हो सकता है ख़तरनाक


मोटापा कम करने या दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर से चर्बी घटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी को लिपोसक्शन कहा जाता है.
डॉक्टरों ने लिपोसक्शन को लेकर कुछ गंभीर चिंताएं ज़ाहिर की हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि लिपोसक्शन की वजह से मोटापे वाले ग्लोब्यूल्स फेफड़ों में दाखिल हो सकते हैं.
डॉक्टरों ने ये दावा 45 साल की एक महिला के केस के हवाले से किया है. घुटने और टांगों से मोटापा कम करने के बाद इस महिला को सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी.
ब्रितानी शहर बर्मिंघम के डॉक्टरों ने बताया कि महिला की हालत इतनी नाज़ुक थी कि वो मौत के मुंह से लौटी हैं.

जानलेवा भी हो सकता है लिपोसक्शन

बीएमजे की रिपोर्ट के मुताबिक, लिपोसेक्शन ब्रिटेन में तेजी से फैल रही बीमारी है जो मरीज़ों की ज़िंदगी के लिए काफ़ी ख़तरनाक है.
सैंडवेल और वेस्ट बर्मिंघम अस्पताल की आईसीयू यूनिट के डॉक्टर अदम अली ने कहा, "इससे पहले ब्रिटेन में फ़ैट इंबोलिज़्म सिंड्रोम (एफ़ईएस) का कोई मामला देखने को नहीं मिला था, लेकिन इसके होने की संभावनाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है."
जिस मरीज़ के हवाले से ये बात हो रही है, वो बेहद मोटी थीं और लिपोसक्शन से पहले ग्रैस्ट्रिक ऑपरेशन से गुज़री थीं.
लेकिन ऑपरेशन के 36 घंटे के बाद उनकी हालत बेहद नाज़ुक हो गई और उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी, जिसके बाद उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया.

लिपोसक्शन है क्या?

डॉक्टरों के तुरंत इलाज के चलते महिला की जान बचा ली गई और तीन हफ्ते के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई.
रिपोर्ट का कहना है कि एफ़ईएस को पहचानना और इलाज करना डॉक्टरों के लिए एक चुनौती की तरह है क्योंकि इसके लक्षण बहुत ही सामान्य और कम हैं.
दरअसल लिपोसक्शन एक ऐसा मेडिकल तरीका है जिसके ज़रिए डॉक्टर शरीर के उन हिस्सों से मोटापा कम कर देते हैं, जहां इन्हें शिफ्ट नहीं किया जा सकता.
जैसे जांघ, हिप्स और पेट. ये तरीका उन लोगों के लिए सबसे बेहतर है जिनकी त्वचा बहुत टाइट और वज़न सामान्य होता है.
इसके नतीजे काफ़ी वक्त तक रहते हैं. लेकिन अब इसके साइड इफ़ेक्ट्स को देखते हुए ये कहा जा रहा है कि लिपोसक्शन के कई बार ग़लत परिणाम भी होते हैं.

बाज़ार में उतरे शाओमी के दो ऑक्टाकोर फ़ोन

बाज़ार में उतरे शाओमी के दो ऑक्टाकोर फ़ोन

मोबाइल फ़ोन कंपनी शाओमी ने भारत में अपना एक नया फ़ोन लॉन्च किया है एमआई ए1. साथ ही बुधवार से कंपनी का नया फ़ोन एमआई मैक्स2 बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाएगा.

मंगलवार को भारत में लॉन्च किया गया एमआई ए1 14,999 रुपये का फ़ोन है और ये कंपनी का पहला फ़ोन है जो ड्यूअल कैमरे के साथ बाज़ार में उतारा गया है, यानी फ़ोन में पीछे की तरफ दो कैमरे हैं बारह मेगापिक्सल के.
कैमरे की बात करें तो फ़ोन का कैमरा स्लोमोशन वीडियो बनाने में सक्षम है और साथ ही 4के में भी शूटिंग कर सकता है. कैमरे में 2एक्स ऑप्टिकल ज़ूम है जो इसे एप्पल आईफ़ोन 7 प्लस के साथ तुलना करने लायक बनाता है.

एमआई ए1 की ख़ास बातें

ये कंपनी का पहला फ़ोन है जिसके लिए कंपनी ने गूगल से एंड्रायड वन के तहत साझेदारी की. इस पार्टनरशिप के तहत फ़ोन बनाने वाली कंपनी एंड्रॉएड ऑपरेटिंग सिस्टम को अपने फ़ोन में बिना अतिरिक्त फीचर्स के इस्तेमाल करती है. एमआई ए1 में एंड्रायड नोगट 7.1.2 ऑपरेटिंग सिस्टम है.
जानकारों के अनुसार गूगल ऑपरेटिंग सिस्टम को शुद्ध रूप में इस्तेमाल करने वाले इसे पसंद करते हैं. हालांकि ये भारत में लांच होने वाला ये पहला ऐसा फ़ोन नहीं हैं. इससे पहले एचटीसी, माइक्रोमैक्स, कार्बन और स्पाइस एंड्राएड वन के साथ अपने फ़ोन लांच कर चुके हैं.
5.5 इंच का ये फ़ोन फुल एचडी डिस्प्ले के साथ है और कोर्निंग गोरिल्ला ग्लास की सुरक्षा के साथ आता है. फ़ोन में पीछे की तरफ फिंगरप्रिंट स्कैनर है. कंपनी अपने नोट सिरीज़ के फ़ोन में पहले भी फिंगरप्रिंट स्कैनर देती आई है और इसके फ़ोन इस्तेमाल करने वालों को अब तक इस फीचर की आदत पड़ गई है और उनके लिए ये फायदेमंद फीचर है.
ये फ़ोन ऑक्टाकोर स्नैपड्रैगन 625 प्रोसेसर पर आधारित है जो एड्रेनो 506 ग्राफिक्स प्रोसेसर के साथ है. ये दोनों मिल कर इसे एक फास्ट डिवाइस बनाते हैं, कंपनी के अनुसार इस फ़ोन में ऊपर और नीचे दोनों तरफ माइक्रोफ़ोन हैं जो नॉयस रिडक्शन फीचर्स के साथ हैं.
एक फास्ट प्रोसेसर को उचित मदद देने के लिए कंपनी ने इसमें 4एमबी रैम के इस्तेमाल किया है और साथ ही इसमें 64जीबी का स्टोरेज भी दिया है. मेमरी कम पड़ जाए तो कभी भी इसे 128जीबी तक बढ़ाया जा सकता है.
आजकल बाज़ार में आने वाले अधिकतर फ्लैगशिप फ़ोन फुल मेटल बॉडी के साथ होते हैं, इसे ध्यान में रखते हुए इस फ़ोन में भी पूरे मेटल बॉडी का इस्तेमाल हुआ है.
फ़ोन की सबसे बढ़िया बात है इसमें इस्तेमाल होने वाला टाइप सी यूएसबी कनेक्टर जो फास्ट चांर्जिंग के लिए जाना जाता है. साल 2015 में इस चार्जिंग पिन को पहली बार इंन्टरनेशल कन्ज़यूमर इलेक्ट्रोनिक शो सीईएस में प्रदर्शित किया गया था.

एमआई मैक्स2 के फीचर्स
6.44 इंच के डिस्प्ले के साथ लांच किया गया ये फ़ोन बुधवार से भारत में बिक्री के लिए उपलब्ध हो रहा है.
फ़ोन ऑक्टाकोर स्नैपड्रेगन 625 प्रोसेसर के साथ है और इसमें स्टीरियो इफेक्ट के लिए दो स्पीकर इस्तेमाल किए गए हैं.
फुल मेटल बॉडी के साथ आने वाले ये फ़ोन 4जीबी रैम के साथ है और दो मेमरी ऑप्शन्स में उपलब्ध होगा- 32जीबी और 64जीबी. ज़रूरत पड़ने पर इसकी मेमरी को 128जीबी तक बढ़ाया जा सकता है.
कंपनी का दावा है कि फ़ोन का 5300एमएएच की बैटरी 18 घंटों तक वीडियो चलाने में सक्षम है और इस पर एक बार चार्ज करने पर आप10 दिन तक ऑडियो सुन सकते हैं.
फ़ोन के अन्य फीचर्स है सोनी के सेंसर वाला 12 मेगापिक्सल का रीयर कैमरा, फिंगरप्रिंट सेंसर और फास्ट चार्जिंग के लिए टाइप सी यूएसबी कनेक्टर.

ब्लूटूथ ऑन रखा तो हो सकता है अटैक!

ब्लूटूथ ऑन रखा तो हो सकता है अटैक!

मोबाइल फोन का ब्लूटूथ ऑन रखना ख़तरनाक साबित हो सकता है. सिक्योरिटी कंपनी अर्मिस के शोधकर्ताओं के समूह ने बीते मंगलवार को एक ऐसे मैलवेयर का पता लगाया है जो ब्लूटूथ से जुड़े डिवाइस पर हमला कर सकता है.


यह स्मार्टफोन ही नहीं, बल्कि स्मार्ट टीवी, टैबलेट, लैपटॉप, लाउडस्पीकर और कारों पर भी हमला कर सकता है.
दुनिया में कुल मिलाकर 5.3 अरब डिवाइस हैं जो ब्लूटूथ का इस्तेमाल करते हैं.
इस मैलवेयर का नाम ब्लूबॉर्न है. इसके जरिए हैकर उन डिवाइस को अपने नियंत्रण में ले सकता है जिनका ब्लूटूथ ऑन होगा. इसके जरिए आपके मोबाइल का डाटा आसानी से चोरी किया जा सकता है.
अर्मिस का कहना है, "हमलोगों को लगता है कि ब्लूटूथ डिवाइस से जुड़े कई और ऐसे मैलवेयर हो सकते हैं, जिनकी पहचान की जानी बाकी है."

बगिंग

इसके मैलवेयर के हमले काफी गंभीर हो सकते हैं. ये बग ब्लूटूथ का फायदा उठाकर हमला करता है. ब्लूबॉर्न इसी श्रेणी में आता है.
इसके ज़रिए हमलावर आपके डिवाइस में वायरस भेज कर आपका डेटा चुरा सकते है.
ब्लूबॉर्न को यूजर की सहमति की जरूरत नहीं होती है और वो किसी लिंक पर क्लिक करने को भी नहीं कहता. सिर्फ दस सेकंड में वो किसी एक्टिव ब्लूटूथ डिवाइस को नियंत्रित कर सकता है.
आर्मिस ने एक ऐसा एप्लीकेशन बनाया है जो यह पता लगा सकता है कि आपका डिवाइस सुरक्षित है या नहीं. इस एप्लीकेशन का नाम है 'ब्लूबॉर्न वलनरब्लिटी स्कैनर'. ये ऐप गूगल के ऑनलाइन स्टोर पर उपलब्ध है.

ब्लूजैकिंग

दूसरा खतरा है ब्लूजैकिंग. यह ब्लूटूथ से जुड़े कई डिवाइस को एक साथ स्पैम भेज सकता है.
यह वीकार्ड (पर्सनल इलेक्ट्रॉनिक कार्ड) के जरिए मैसेज भेजता है, जो एक नोट या फिर कॉनटैक्ट नंबर के रूप में होता है. आम तौर पर यह ब्लूटूथ डिवाइस के नाम से स्पैम भेजता है.

ब्लूस्नार्फिंग

यह ब्लूजैकिंग से ज्यादा खत़रनाक है. इसके जरिए सूचनाओं की चोरी होती है. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से फोनबुक और डाटा चुराने के लिए किया जाता है.
इसके जरिए निजी मैसेज और तस्वीर भी चुराए जा सकते हैं. लेकिन इसके लिए हैकर को यूजर से 10 मीटर के दायरे में होना ज़रूरी होता है.

कैसे सुरक्षित रहें

  • माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और लिनक्स ने ब्लूबॉर्न से यूजर को बचाने के लिए पैच रिलीज की है, जिसे इंस्टॉल कर लें.
  • आधुनिक उपकरणों में ब्लूटूथ कनेक्टिविटी के लिए कंफर्मेशन कोड ज़रूरी होता है, इसका इस्तेमाल करें.
  • मोड 2 ब्लूटूथ का इस्तेमाल करें, यह ज्यादा सुरक्षित होता है.
  • अपने डिवाइस ब्लूटूथ नाम को हिडेन मोड में ही रखें.
  • इस्तेमाल नहीं किए जाने पर ब्लूटूथ को ऑफ रखें.

Tuesday, September 5, 2017

इंसेफ़ेलाइटिस से निपटने के लिए ज़रूरी हैं ये 6 उपाय

इंसेफ़ेलाइटिस से निपटने के लिए ज़रूरी हैं ये 6 उपाय

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में महज़ दो दिनों में 42 बच्चों की मौत हो चुकी है.
यह वही मेडिकल कॉलेज है जो बीते कई वर्षों से जानलेवा दिमाग़ी बुख़ार यानी इंसेफ़ेलाइटिस के चलते हर साल औसतन 500 मौतों के लिए अख़बारों की सुर्खियों में आता रहा है.
इस साल भी अब तक इस मर्ज़ से यहां बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो चुकी हैं. अभी इसका तांडव ख़त्म होने में कम से कम 5 महीने बाकी हैं. तब तक न जाने यह आंकड़ा कितना ऊपर चला जाएगा.
नवजात शिशुओं की मृत्युदर में अचानक आए इस उछाल की वजहों और इसे रोकने के उपायों पर बीबीसी ने बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और बाल रोग विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर केपी कुशवाहा से बात की.

1- साफ़-सफ़ाई पर जागरूकता बढ़ानी होगी

चाहे इंसेफ़ेलाइटिस हो या फिर नवजातों की मौत, सफ़ाई का अभाव इनके पीछे बड़ी वजह है.
ग्रामीण इलाकों में अभी भी 'सौर' (घर में नवजात और प्रसूता के लिए बनाया गया कमरा) में पर्याप्त साफ़-सफ़ाई नहीं होती जिससे नवजात को संक्रमण का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है.
2-निचले स्तर पर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की तैनाती हो
मेडिकल कॉलेज तक पहुंचने वाले 50 फ़ीसदी बच्चों में ब्रेन डैमेज की स्थिति आ चुकी होती है.
दिमाग में ऑक्सीजन की आपूर्ति रुकने लगती है, दिल और गुर्दे काम करना बंद करने लगते हैं.
ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि बच्चे को इलाज मिलने में देर हो गई होती है.
ज़रूरत इस बात की है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से लेकर ऊपरी चिकित्सा केन्द्रों पर ऐसे मामलों की पहचान कर सकने के लिए शिक्षित-प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मी नियुक्त हों.
यदि हम पंचायत स्तर पर आशा कर्मियों की तरह ही ऐसे कार्यकर्ता तैनात कर सकें तो इंसेफ़ेलाइटिस से लड़ने में भी बड़ी मदद मिलेगी.
3-ब्रेस्ट फीडिंग काउंसलर लगाए जाएं
नवजात शिशुओं की बहुत सी समस्याएं केवल स्तनपान से भी ठीक हो सकती हैं, इसलिए निचले स्तर पर स्तनपान परामर्शक तैनात किए जाएं.
इससे मृत्युदर में बहुत कमी लाई जा सकती है.

4-भीड़ के अनुरूप संसाधन बढ़ाना ज़रूरी

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल के गंभीर रोगियों के इलाज का भार वहन करने वाले इस मेडिकल कॉलेज में नियोनेटल आईसीयू में कुल 44 बेड हैं.
जबकि भर्ती बच्चों की संख्या अक्सर 100 के करीब होती है.
संक्रमण रोकने के लिए आदर्श स्थिति यह है कि एक से दूसरे बेड के बीच 3 फ़ीट का फ़ासला रहे मगर यहां एक-एक बेड पर 3-3 बच्चे हैं.
इससे संक्रमण का ख़तरा बढ़ जाता है. ऐसे में क्षमता बढ़ाना ज़रूरी है.

5-संसाधन और तकनीक पर ज़ोर

संसाधनों के मामले में हमें अपनी स्थिति और सोच दोनों को बदलना होगा.
हम साल भर में ऐसे आईसीयू को एक-दो बार संक्रमण मुक्त करके स्थितियों में सुधार नहीं ला सकते. ऐसा प्रतिदिन दो बार करना होगा.
नवजात बच्चों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए स्पेशल ट्रांसपोर्टेशन और स्पेशल वॉर्मर इस्तेमाल करने होंगे.
इसी तरह नवजात बच्चों के लिए इंट्राकैथ इस्तेमाल करने के बजाय आईवी फ्लूइड लाइन जैसे उपाय अपनाने चाहिए.

6-भ्रष्टाचार रोकिए

इन सारे उपायों के लिए ज़रूरी है कि अस्पतालों या मेडिकल कॉलेजों को अपने नियमित बजट रिलीज़ कराने के लिए लखनऊ के चक्कर न काटने पड़ें.
यह भ्रष्टाचार को जन्म देता है. सरकार को इस पर निगरानी रखनी होगी वरना बच्चों की मौत के मामले इसी तरह सामने आते रहेंगे.

Tuesday, August 1, 2017

'ना मरने वाले जीव' के राज़

'ना मरने वाले जीव' के राज़

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आठ पांवों वाले सूक्ष्मजीव 'टार्डिग्रेड्स' के जेनेटिक अध्ययन से उसकी असाधारण क़ाबिलियत का पता चला है.
एक मिलीमीटर या उससे भी छोटा यह जीव रेडिएशन, जमा देने वाली ठंड, ख़तरनाक सूखे और यहां तक कि अंतरिक्ष में भी अपनी जान बचा सकता है.
शोधकर्ताओं ने टार्डिग्रेड की दो प्रजातियों का डीएनए डिकोड किया और उन जीन का पता लगाया जिनकी बदौलत वह ख़तरनाक सूखे के बाद भी अपनी जान बचाए रखता है और फिर दोबारा ज़िंदा हो उठता है.
यह अध्ययन पीएलओएस बायोलजी नाम के जर्नल में छपा है.
इस नन्हे जीव को धरती का सबसे जुझारू जीव माना जाता है. आकार के चलते इसे पानी का भालू भी कहा जाता है. हाल के शोध के मुताबिक, पृथ्वी पर कोई भी आपदा आने की सूरत में वे अपनी जान बचा सकते हैं.
टार्डिग्रेड्स आम तौर पर उन जगहों पर पाए जाते हैं, जो पानी की मौजूदगी के बाद सूख चुकी होती हैं, मसलन दलदल या तालाब. समय के साथ उन्होंने बेहद शुष्क माहौल में भी अपनी जान बचाए रखने और कई सालों बाद दोबारा पानी पाकर ज़िंदा हो उठने की क्षमता विकसित कर ली है.
इस नए शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि उनकी इस असाधारण क़ाबिलियत की जेनेटिक वजह है. सूखे की स्थिति में टार्डिग्रेड के कुछ ऐसे जीन सक्रिय हो जाते हैं जो उनकी कोशिकाओं में पानी की जगह ले लेते हैं. फिर वे इसी तरह रहते हैं और कुछ महीनों या सालों बाद जब दोबारा पानी उपलब्ध होता है तो अपनी कोशिकाओं को वो दोबारा पानी से भर लेते हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस जन्मजात क्षमता को समझने से इंसानों को फायदा हो सकता है. मसलन, लाइव टीकों को दुनिया भर में बिना रेफ्रिजरेशन के स्टोर किया जा सकता है.
शोध के सह-लेखक और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में प्रोफेसर मार्क ब्लैक्स्टर कहते हैं, 'अद्भुत क्षमताओं वाले टार्डिग्रेड्स हमें असल दुनिया की कुछ समस्याओं से निपटने के तरीके सुझा सकते हैं, मसलन टीकों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना.'
इन डीएनए को डिकोड करके शोधकर्ता उस पुराने सवाल पर भी आगे बढ़े हैं कि क्या टार्डिग्रेड कीटों और मकड़ियों के करीब हैं या उनका गोलकृमियों से कोई रिश्ता है.
उनका निराला आकार, आठ मोटे मोटे पांव और जबड़े, उनके कृमियों से ज़्यादा कीटों के करीब होने के संकेत देते हैं, लेकिन उनके जीन का अध्ययन कुछ और बताता है.
टार्डिग्रेड्स में सिर और पूंछ के विकास को नियंत्रित करने वाले एचओएक्स जीन की संख्या सिर्फ पांच होती है, जो कृमियों जैसा है.
प्रोफ़ेसर ब्लैक्स्टर कहते हैं, 'यह असली चौंकाने वाली बात थी, जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी.'
वह कहते हैं, 'मैं इन नन्हे प्यारे जीवों पर दो दशकों से मोहित हूं. यह शानदार है कि अब हमारे पास उनके असली जीन समूह हैं और हम उन्हें समझना शुरू कर चुके हैं.'
वैज्ञानिकों ने ऐसे प्रोटीन्स के एक समूह का भी पता लगाया है जो टार्डिग्रेड के डीएनए को सुरक्षित रख सकता है.

Thursday, July 27, 2017

'नीतीश कुमार यू-टर्न की राजनीति के मास्टर हैं'

'नीतीश कुमार यू-टर्न की राजनीति के मास्टर हैं'

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अगर यही सब कुछ होना था तो आखिर क्यों चार अहम साल (16 जुलाई, 2013 से 26 जुलाई, 2017) बर्बाद किए गए? बिहार के हर हलके में आज ये सवाल छाया हुआ है. और आज जिनकी साख पर बट्टा लगने में जरा भी वक्त नहीं लगा, वो शख्स कोई और नहीं बल्कि छवि गढ़ने की राजनीति के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार हैं.
गुरुवार को नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली. इस बार नीतीश ने अपनी कैबिनेट में पुराने दोस्त सुशील कुमार मोदी को तेजस्वी यादव वाली जगह दी है.
चाहे नीतीश को पसंद करने वाले लोग हों या फिर उनकी मुखालफत करने वाले, हर कोई आज ये पूछ रहा है कि इन चार सालों में जो चार सरकारें आईं और गईं और उनकी वजह से जो राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक अनिश्चितता का माहौल रहा, उसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

समता पार्टी का गठन

अगर वे इसकी जिम्मेदारी बड़े भाई लालू यादव पर थोपना चाहते हैं कि उनके मामले में गलती हो गई तो हर किसी को ये मालूम है कि आरजेडी के मुखिया एक दोषी करार दिए गए राजनेता हैं और अन्य नेताओं की तरह वंशवाद की राजनीति उनकी भी कमजोरी है.
साल 1994 में जब नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाने के लिए लालू यादव का साथ छोड़ा था तो अच्छी-खासी संख्या में जनता दल समर्थक पार्टी छोड़ कर उनके साथ हो लिए थे. 1995 के विधानसभा चुनावों में नीतीश ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर पहली बार अलग चुनाव लड़ा था तो कहीं कोई खुसफुसाहट तक नहीं हुई.

बीजेपी की डिनर पार्टी

साल भर बाद ही नीतीश ने यू-टर्न लिया और भारतीय जनता पार्टी के खेमे में शरीक हो गए तो कहीं-कहीं विरोध के सुर सुनाई दिए. कुछ नेताओं ने समता पार्टी छोड़ दी जिसमें सैयद शहाबुद्दीन जैसे नाम थे लेकिन तब कई लोगों ने ये दलील दी कि बीजेपी को गले लगाना नीतीश की सियासी मजबूरी थी, नहीं तो उनका वजूद ही मिट जाता.
मंडल के बाद की राजनीति में बीजेपी को एक पिछड़ी जाति का नेता मिल गया था. नीतीश जिस काबिल थे, उन्हें उससे ज्यादा अहमियत मिली. वक्त गुजरता और बदलता रहा.

गुजरात सरकार को चेक वापसी

12 जून, 2010 को नीतीश कुमार ने पटना में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए रात्रिभोज का कार्यक्रम रद्द कर दिया. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पार्टी कार्यकारिणी की बैठक के सिलसिले में इकट्ठा हुआ था.
इसके कुछ हफ्ते बाद नीतीश कुमार गुजरात सरकार को दान में मिले पांच करोड़ रुपये की रकम वापस कर देते हैं. गुजरात सरकार ने ये पैसा 2008 के कोसी बाढ़ पीड़ितों के लिए सहायता राशि के तौर पर दी थी. भगवा खेमे में इस बात को लेकर गहरी निराशा थी.
चार महीने बाद बिहार विधानसभा के चुनाव थे और इसे देखते हुए पार्टी अपमान का घूंट पीकर रह गई. लेकिन इस घटना के साढ़े तीन साल बाद जब नीतीश कुमार ने अचानक सभी मंत्रियों को बिना कोई कारण बताए मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया तो उनके शुभचिंतक भी उनसे नफरत करने लगे.

मोदी की हुंकार रैली

तब बीजेपी के किसी भी मंत्री के खिलाफ न तो भ्रष्टाचार का कोई आरोप था और न ही सरकार का कामकाज ठीक से न करने का, लेकिन इसके बावजूद उन्हें चलता कर दिया गया. बदले में भाजपा नेताओं की तरफ से उन्हें पसंदीदा गालियां दी गईं, ऐसे शब्दों के इस्तेमाल किए गए जो कभी लालू प्रसाद यादव तक के ख़िलाफ़ नहीं किए गए थे.
मीडिया में नीतीश कुमार को अवसरवादी और गद्दार तक करार दिया गया. बोध गया में जब बम धमाके हुए और 27 अक्टूबर, 2013 को पटना में नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली के दौरान गांधी मैदान में बम फट गया तो उनके पुराने दोस्तों ने उन पर चरमपंथियों के प्रति नरम रवैया रखने का आरोप तक लगाया.

2014 के चुनाव

तब नीतीश के लिए इस स्थिति का सामना करने में मुश्किल आ गई. मई, 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक दिन बाद नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. तब नीतीश ने मुख्यमंत्री पद के लिए जीतनराम मांझी को चुना. और फिर शुरू हुआ बिहार में नौ महीने की अराजकता का दौर.
नीतीश पर्दे के पीछे रहकर सरकार चलाना चाहते थे और जीतनराम मांझी को ये पसंद नहीं था. इसके बाद नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी के समर्थकों के बीच सार्वजनिक तौर पर तू-तू-मैं-मैं का दौर शुरू हुआ. और आखिरकार जीतनराम मांझी को भी सत्ता से बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया.

जीतनराम मांझी प्रकरण

फरवरी, 2015 के आखिरी हफ्ते में नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने. इस नौ महीने में जीतनराम मांझी ने खुलकर नीतीश कुमार पर भ्रष्ट ठेकेदारों को संरक्षण देने का आरोप लगाया. मांझी के मुताबिक ये ठेकेदार बिहार को लूट रहे थे. उन्होंने बिहार सरकार में चल रहे कई गंभीर घोटालों की तरफ लोगों का ध्यान दिलाया.
नीतीश ने जब देखा कि उनकी छवि पर गहरे दाग रहे हैं तो उन्होंने लालू प्रसाद यादव के साथ हाथ मिला लिया. वे जानते थे कि लालू यादव के पास वोट बैंक है, लेकिन अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद वे मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं.

महागठबंधन की जीत

आरजेडी सुप्रीमो राजनीतिक तौर पर फिर से प्रासंगिक होने के लिए बेकरार थे और लालू यादव को एक बार फिर से इसका मौका मिल गया. इसके बाद आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के बीच महागठबंधन हुआ और बिहार की 243 में से 178 सीटें इनकी झोली में आ गिरी. अगर तीनों पार्टियां अलग होकर लड़ी होतीं तो 78 सीटें तक इनके लिए जीतना मुश्किल था.
इसलिए एक तरीके से कहा जाए तो लालू यादव ने नीतीश को हारने से बचाया और नीतीश ने लालू यादव को राजनीति की मुख्यधारा में फिर से लाने में मदद की. इसलिए आज जो कुछ हो रहा है, उसके लिए नीतीश किसी को दोष नहीं दे सकते. महागठबंधन के बारे में वो जो कुछ कहना चाहते हैं, कहने के लिए आजाद हैं.

जेडीयू-आरजेडी का विलय प्रस्ताव

लेकिन हकीकत तो ये है कि ये 20 महीने उन 29 महीनों (16 जून, 2013 से 20 नवंबर, 2015) से कही बेहतर हैं जब नीतीश कुमार सभी तरह के राजनीतिक प्रयोगों में मशरूफ थे. जब आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस में गठबंधन हुआ था तो कई लोगों ने कहा था, 'गुड़ खाते हैं, गुल-गुले से परहेज करते हैं.'
जेडीयू-आरजेडी के विलय प्रस्ताव पर भी नीतीश कुमार को कोई हिचक नहीं थी और 28 मार्च, 2015 को तिहाड़ जेल में बंद ओम प्रकाश चौटाला से मिलने में भी उन्होंने कोई गुरेज नहीं किया लेकिन अपने डिप्टी मुख्यमंत्री से उन्हें महज एक एफआईआर होने पर दिक्कत हो गई.
एनडीए में नीतीश की घरवापसी को जितनी तेजी से अंजाम दिया गया उससे लोगों का ये ख्याल अब जोर पकड़ रहा है कि नीतीश ने मनमाने किस्म की राजनीति शुरू कर दी है.

Monday, July 24, 2017

कुत्ते क्यों होते हैं इंसानों के सबसे अच्छे दोस्त?

कुत्ते क्यों होते हैं इंसानों के सबसे अच्छे दोस्त?

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कुत्ते भरोसेमंद होते हैं, ये तो हम आप जानते ही हैं. लेकिन नए अध्ययन के मुताबिक वे हमारे सबसे अच्छे दोस्त भी होते हैं.
अमरीकी वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कुत्तों में दोस्ती करने का विशेष अनुवांशिक गुण मौजूद होता है.
कुत्तों का विकास भेड़ियों से ही हुआ है. रिसर्च में पाया गया कि हजारों साल की विकास प्रक्रिया के बाद कुत्ते झुंड में रहने लगे. इसी वजह से वे इंसानों के भी ज़्यादा क़रीब आने लगे.
शोधकर्ताओं ने पालतों कुत्तों और भेड़ियों के अलग-अलग व्यवहार का परीक्षण किया, जिसमें उनकी समस्या हल करने की क्षमता और लोगों के साथ घुलने-मिलने वाले व्यवहार को जांचा गया.
शोधकर्ताओं ने पाया कि किसी समस्या को हल करने के मामले में भेड़िए और कुत्ते एक समान क्षमता रखते हैं लेकिन किसी के साथ दोस्ती करने के मामले में कुत्ते ज़्यादा तेज़ साबित हुए.

हज़ारों साल पुराना साथ

कुत्ते आसानी से किसी अपरिचित के पास चले जाते हैं जबकि भेड़िए इस मामले में अलग ही रहते हैं.
इस शोध की सह-शोधकर्ता और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की डॉ. इलेन ओसट्रेंडर ने कहा कि इस शोध के जरिए इंसान के व्यवहार में आने वाली समस्याओं को समझने में भी मदद मिल सकेगी.
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20,000 से 40,000 साल पहले भेड़ियों को कुत्तों के रूप में पालने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. यह रिसर्च ये भी बताती है कि किस तरह वक़्त के साथ भेड़ियों के अंदर दोस्ती के गुण पैदा होते गए और आज वे कुत्तों के रूप में इंसानों के सबसे अच्छे दोस्त बन गए हैं. यह अध्ययन मूल रूप में साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

मोटापा कम करने का ये तरीका हो सकता है ख़तरनाक

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